बहुत नज़दीक है अंतिम पहर, तैयार रहो
मैं अपनी राह तुम अपनी ड़ग़र, तैयार रहो
बहुत मुश्किल है निभाना, निभाना ही क्यूँ
मैं गुनहगार रहूं और तुम खुद्दार रहो
तुम्हें गैरों के साथ देखता हूँ, जलता हूँ
मैं समझदार नहीं तुम तो समझदार रहो
कोई रिश्ता नही बना तो हाथ छोड़ दिया
यही तो सीख है ‘जन्नत’ कि होशियार रहो
नवीन कुमार ‘जन्नत’